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    इतिहास

    रीवा जिले का न्यायिक इतिहास

    रीवा जिले में राजशाही व राजदरबार में पहले न्याय होता था, लेकिन पृथक न्यायिक व्यवस्था रीवा के महाराजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने शुरू की, व उन्होंने सन 1827 में मिताक्षरा न्यायालय व धर्मसभा बनाया गबया था, जो कचेहरी मिताक्षरा के नाम से मसहूर हुई। पं0कृष्णाचारी, गोबिन्दराम शुक्ला, गोकुल नाथ महापात्र की व्यवस्था पवर दीवानी, फौजदारी फैसले होने लगे व धर्मसभा के हाकिम रामनाथ गड़रिहा नियुक्त किये गये, कुछ दिन बाद जग्रन्नाथ शास्त्री धर्मसभा में शामिल किये गये।

    रीवा जिले की पुरानी रियाशत पृथक न्याय व्यवस्था के तारतम्य में जगन्नाथ शास्त्री के न्यायालय में रीवा रीवा रियासत के राजा विश्वनाथ सिंह के उपर एक व्यक्ति ने मामला दायर किया, तात्कालिक युवराज को बाकायदा पक्षकार के रूप में संमंस जारी किया गया व फिर कचहरी में विश्वनाथ सिंह हाजिर हुए, शास्त्री जी ने बाकायदा वर्तमान आदेश पत्रिका जिसे इजहार कहते थे उसे लिखकर रूकसत किया।

    रीवा राजशाही में ही लिखित कानून बनाये गये जिसमें प्रमुख कानून रीवा राज माल कानून 1935 बना था। 1935 में ही त्यौथर, मउगंज, सिरमौर तहसील न्यायालय का गठन हुआ व 1935 में ही रीवा में विधिवत् कचहरी का गठन हुआ। उसके बाद विंध्य प्रदेश जब बना तो हाईकोर्ट ज्युडिकेटर विंध्य प्रदेश का उद्घाटन दिनांक 01.09.1948 को 03.45 बजे माननीय मुख्य न्यायाधिपति रायबहादुर पी.सी.मोघा ने किया व उस समय न्यायाधिपति के रूप में पंचोली चतुर सिंह, दुर्गाप्रसाद, लाल प्रद्वुमन सिंह काम किये। सन् 1956 में मध्यप्रदेश बनने के बाद उक्त ज्युडिशियल कमिश्नर का विलय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में हो गया। रीवा राज में पृथक वकील एशोशिएशन बाबू राम मनोहर लाल ने गठित की, प्रथम अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने रीवा राज माल कानून की रचना की। सन् 1926 में रीवा महराजा एवं ज्युडिशियल कमिश्नर लाल शंकर सिंह की सील से कुछ वकीलों की सनदफ जारी हुई। रीवा ज्युडिशियल कमिश्नर के न्यायमूर्तियों के छायाचित्र उपलब्ध है, रीवा रियासत के बाद ज्युडिशियल कमिश्नर के न्यायालय जिसमें 1948 से 1956 तक हाईकोर्ट लगी, उसकी छायाप्रति संलग्न है।

    रीवा ज्युडिशियल कमिश्नर न्यायालय व रीवा अधिवक्ता संघ के सदस्य न्यायमूर्ति जे.एस.वर्मा एवं गुरूप्रसन्न सिंह थे।